जगज्जाल पालम् कचत् कण्ठमालं ॥ श्री हरि स्तोत्र ॥ Shree Hari Stotra

॥ श्री हरि स्तोत्र ॥




जगज्जाल पालम् कचत् कण्ठमालं शरच्चन्द्र भालं महादैत्य कालम्।
नभो-नीलकायम् दुरावारमायम् सुपद्मा सहायं भजेऽहं भजेऽहं।१।



जो समस्त जगत के रक्षक हैं, जो गले में चमकता हार पहने हुए हैं,

जिनका मस्तक शरद ऋतु में चमकते चन्द्रमा की तरह है और 

जो महादैत्यों के काल हैं। नभ (आकाश) के समान जिनका रंग नीला है, 

जो अजेय मायावी शक्तियों के स्वामी हैं, देवी लक्ष्मी जिनकी साथी हैं

 उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।



सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्हासं जगत्सन्निवासं शतादित्यभासम्।
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीत-वस्त्रं हसच्चारु-वक्रं भजेऽहं भजेऽहं।२।



जो सदा समुद्र में वास करते हैं, जिनकी मुस्कान खिले हुए पुष्प की भाँति है,

 जिनका वास पूरे जगत में है, सौ सूर्यों के सामान प्रतीत होते (दिखते) हैं।

 जो गदा, चक्र और शस्त्र धारण करते हैं, जो पीले वस्त्रों में सुशोभित हैं,

 जिनके सुन्दर चेहरे पर प्यारी मुस्कान है, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।



रमाकण्ठहारं श्रुतिवातसारं जलान्तर्विहारं धराभारहारम्।
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं धृतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं।३।



जिनके गले के हार में देवी लक्ष्मी का चिन्ह बना हुआ है, जो वेद वाणी के सार हैं, 

जो जल में विहार करते हैं और पृथ्वी के भार को धारण करते हैं। 

जिनका सदा आनंदमय रूप रहता है और मन को आकर्षित करता है, 

जिन्होंने अनेकों रूप धारण किये हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।



जराजन्महीनम् परानन्द पीनम् समाधान लीनं सदैवानवीनम्।
जगज्जन्म हेतुं सुरानीककेतुम् त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं।४।



जो जन्म और उम्र से मुक्त हैं, जो परमानन्द से भरे हुए हैं, 

जिनका मन सदैव स्थिरऔर शांत रहता है, जो हमेशा नवीन (नये) प्रतीत होते हैं। 

जो इस जगत के जन्म के कारक हैं, देवताओं की सेना के रक्षक हैं 

और तीनों लोकों के बीच सेतु हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।



कृताम्नाय गानम् खगाधीशयानं विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानम्।
स्वभक्तानुकूलम् जगद्दृक्षमूलम् निरस्तार्तशूलम् भजेऽहं भजेऽहं।५।



जो वेदों के गायक हैं, पक्षीराज गरुड़ की जो सवारी करते हैं,

 जो मुक्तिदाता हैं और शत्रुओं का जो मान हरते हैं।

 जो अपने भक्तों के प्रिय हैं, जो जगत रुपी वृक्ष की जड़ हैं, 

जो सभी दुखों को निरस्त (ख़त्म) कर देते हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।


समस्तामरेशम् द्विरेफाभ केशं जगद्विम्बलेशम् हृदाकाशदेशम्।
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहम् सुवैकुन्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं।६।



जो सभी देवों के स्वामी हैं, काली मधु मक्खी के समान जिनके केश (बालों) का रंग है,

 पृथ्वी जिनके शरीर का हिस्सा है और जिनका शरीर आकाश के समान स्पष्ट है।

 जिनकी देह (शरीर) सदा दिव्य है, जो संसार के बंधनों से मुक्त हैं, 

बैकुंठ जिनका निवास है, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।



सुराली-बलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठम्।
सदा युद्धधीरं महावीर वीरम् महाम्भोधि तीरम् भजेऽहं भजेऽहं।७।



जो सुरों (देवताओं) में सबसे बलशाली हैं, त्रिलोकों में सबसे श्रेष्ठ हैं,

 जिनका एक ही स्वरुप है (परमात्मा या परब्रह्म रूप)। जो युद्ध में सदा वीर हैं,

 जो महावीरों में भी वीर हैं, जो सागर के किनारे पर वास करते हैं, 

उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।



रमावामभागम् तलनग्ननागम् कृताधीनयागम् गतारागरागम्।
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं।८।



जिनके वाम (बाएं) भाग में लक्ष्मी विराजित होती हैं, जो नग्न नाग पर विराजित हैं, 

जो यज्ञों से प्राप्त किये जा सकते हैं और जो राग-रंग से मुक्त हैं।

 ऋषि-मुनि जिनके गीत गाते हैं, देवता जिनकी सेवा करते हैं 

और जो गुणों से परे हैं, उन भगवान् विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।


फलश्रुतिः-

इदम् यस्तु नित्यं समाधाय चित्तम् पठेदष्टकम् कण्ठहारं मुरारेः।
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवम् याति लोकम् जराजन्म शोकं पुनर्विदन्ते नो।९।



भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान है, 

जो भी इसे सच्चे मन से पढता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। 

वह दुःख, शोक, जन्म-मरण से मुक्त होता है इसमें कोई संदेह नहीं है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने