बन्दे सुराणां सारं च ॥ बाणासुरकृतं शिवस्तोत्रम् ॥ Banasurkritam Shivstotram

॥ बाणासुरकृतं शिवस्तोत्रम् ॥

Image of lord Shiva decorated with flowers



बाणासुर उवाच

बन्दे सुराणां सारं च सुरेशं नीललोहितम्।
योगीश्वरं योगबीजं योगिनां च गुरोर्गुरुम्॥ १॥

बाणासुर बोले -जो देवताओं के सारतत्त्व स्वरूप और समस्त देवगणों के स्वामी हैं, जिनका वर्ण नील और लोहित है, जो योगियों के ईश्वर, योग के बीज तथा योगियों के गुरु के भी गुरु हैं, उन भगवान शिव की मैं वन्दना करता हूँ॥१॥

ज्ञानानन्दं ज्ञानरूपं ज्ञानबीजं सनातनम्।
तपसां फलदातारं दातारं सर्वसम्पदाम्॥ २॥

जो ज्ञानानन्द स्वरूप, ज्ञानरूप, ज्ञानबीज, सनातन देवता, समस्त तपस्याओं के फलदाता तथा सम्पूर्ण सम्पदाओं को देने वाले हैं, उन भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ॥२॥

तपोरूपं तपोबीजं तपोधनधनं वरम्।
वरं वरेण्यं वरदमीड्यं सिद्धगणैवरै:॥ ३॥

जो तप स्वरूप, तपस्या के बीज, तपोधनों के श्रेष्ठ धन, श्रेष्ठ वरणीय तथा वरदायक और श्रेष्ठ सिद्धगणों के द्वारा स्तवन करने योग्य हैं, उन भगवान शंकर को मैं नमस्कार करता हूँ॥३॥

कारणं भुक्तिमुक्तीनां नरकार्णवतारणम्।
आशुतोषं प्रसन्नास्यं॑ करुणामयसागरम्॥ ४॥

जो भोग और मोक्ष के कारण, नरक-समुद्र से पार उतारने वाले, शीघ्र प्रसन्‍न होने वाले, प्रसन्‍न मुख तथा करुणा के सागर हैं, उन भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ॥४॥

हिमचन्दनकुन्देन्दुकुमुदाम्भोजसंनिभम् ।
ब्रह्म्योतिःस्वरूपं. च भक्तानुग्रहविग्रहम्॥ ५॥

जिनकी अंग कान्ति हिम, चन्दन, कुन्द, चन्द्रमा, कुमुद तथा श्वेत कमल के सदृश उज्ज्वल है, जो ब्रह्म-ज्योति स्वरूप तथा भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये विभिन्‍न रूप धारण करनेवाले हैं, उन भगवान शंकरको मैं प्रणाम करता हूँ॥५॥

विषयाणां विभेदेन बिभ्रन्तं बहुरूपकम्।
जलरूपमग्निरूपमाकाशरूपमीश्वरम् ॥ ६॥
वायुरूप॑ चन्द्ररूपं सूर्यरूपं महत्प्रभुम्।
आत्मनः स्वपदं दातुं समर्थमवलीलया॥ ७॥
भक्तजीवनमीशं च भक्तानुग्रहकातरम् ।
वेदा न शक्ता यं स्तोतुं किमहं स्तौमि तं प्रभुम्॥ ८ ॥

जो विषयों के भेद से बहुत से रूप धारण करते हैं; जल, अग्नि, आकाश, वायु, चन्द्रमा और सूर्य जिनके स्वरूप हैं, जो ईश्वर एवं महात्माओं के प्रभु हैं और लीला पूर्वक अपना पद देने की शक्ति रखते हैं, जो भक्तों के जीवन हैं तथा भक्तों पर कृपा करने के लिये आतुर हो उठते हैं। वेद भी जिनका स्तवन करने में असमर्थ हैं, उन परमेश्वर प्रभु की मैं क्या स्तुति करूँगा 2॥ ६-७-८ ॥

अपरिच्छिनममीशानमहो वाङ्मनसोः परम्। 
व्याघ्रचर्माम्बरधरं वृषभस्थं दिगम्बरम्।
त्रिशूलपट्टिशधरं सस्मितं चन्द्रशेखरम्॥ ९॥ 

अहो ! जो ईशान देश, काल और वस्तुसे परिच्छिन्न नहीं हैं तथा मन और वाणी की पहुँच से परे हैं। जो बाघम्बर धारी अथवा दिगम्बर हैं, बैल पर सवार हो त्रिशूल और पट्टिश धारण करते हैं, उन मन्द मुसकान की आभा से सुशोभित मुख वाले भगवान चन्रशेखर को मैं प्रणाम करता हूँ॥ ९॥

इत्युक्ता स्तवराजेन नित्यं बाण: सुसंयतः।
प्रणमेच्छट्टर भक्त्या. दुर्वासाशइच मुनीएवर:॥ १०॥

यों कहकर बाणासुर प्रतिदिन संयम पूर्वक रहकर स्तवराज से भगवान की स्तुति करता था और भक्ति भाव से शंकरजी के चरणों में मस्तक झुकाता था। मुनीश्वर दुर्वासा भी ऐसा ही करते थे॥ १०॥

इृदं दत्त वसिष्ठेन गन्धर्वाय पुरा मुने। 
कथितं च महास्तोत्र शूलिन: 
इदं स्तोत्र महापुण्यं पठेद् भकत्या च यो नरः। 
स्नानस्य सर्वतीर्थानां फलमाप्नोति निश्चितम्॥ १२॥ 

हे मुनि। वसिष्ठ जीने पूर्वकाल में त्रिशुल धारी शिव के इस परम महान अद्भुत स्तोत्र का गन्धर्व को उपदेश दिया था। जो मनुष्य भक्ति भाव से इस परम पुण्यमय स्तोत्र का पाठ करता है, वह निश्चय ही सम्पूर्ण तीर्थो में स्नान का फल पा लेता है॥ ११-१२॥

अपुत्रो लभते पुत्र वर्षमेकं श्रुणोति यः।
संयतश्च हविष्याशी प्रणम्य शड्डूरं गुरुम्॥ १३॥

जो हविष्य खाकर संयम पूर्वक रहते हुए जगद गुरु शंकर को
प्रणाम करके एक वर्ष तक इस स्तोत्र को सुनता है, वह पुत्र हीन हो तो अवश्य ही पुत्र प्राप्त कर लेता है॥ १३॥

गलत्कुष्ठी महाशूली वर्षमेकं श्रूणोति यः।
अवश्यं मुच्यते रोगाद् व्यासवाक्यमिति श्रुतम्॥१४॥

जिसको गलित कोढ़ का रोग हो या उदर में बड़ा भारी शूल उठता हो, वह यदि एक वर्ष तक इस स्तोत्र को सुने तो अवश्य ही उस रोग से मुक्त हो जाता है। यह बात मैंने व्यास जी के मुँह से सुनी है॥ १४॥

कारागारेऽपि बद्धो यो नेव प्राप्नोति निर्व॒तिम्।
स्तोत्र श्रुव्वा मासमेकं मुच्यते बन्धनाद् श्लुवम्॥१५॥

जो कैद में पड़कर शान्ति न पाता हो, वह भी एक मास तक इस
स्तोत्र को श्रवण करके अवश्य ही बन्धन से मुक्त हो जाता है॥ १५॥

भ्रष्टराज्यो लभेद् राज्यं भक्त्या मासं श्रुणोति यः।
मासं श्रुत्वा संयतश्च लभेद् भ्रष्टधनो धनम्॥१६॥

जिसका राज्य छिन गया हो, ऐसा पुरुष यदि भक्ति पूर्वक एक मास तक इस स्तोत्र का श्रवण करे तो अपना राज्य प्राप्त कर लेता है। एक मास तक संयम पूर्वक इसका श्रवण करके निर्धन मनुष्य धन पा लेता है॥ १६॥

यक्ष्मग्रस्तो वर्षमेकमास्तिको यः श्रूणोति चेत्।
निश्चितं मुच्यते रोगाच्छडट्टूरस्थ प्रसादत:॥ १७॥

राजयक्ष्मा से ग्रस्त होने पर जो आस्तिक पुरुष एक वर्ष तक इसका श्रवण करता है, वह भगवान शंकर के प्रसाद से निश्चय ही रोग मुक्त हो जाता है॥ १७॥

यः श्रुणोति सदा भक्‍त्या स्तवराजमिमं द्विज।
तस्यासाध्यं त्रिभुवने नास्ति किंचिच्य शौनक॥१८॥

द्विज शौनक! जो सदा भक्ति भाव से इस स्तवराज को सुनता है, उसके लिये तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं रह जाता॥ १८ ॥

कदाचिद् बन्धुविच्छेदो न भवेत् तस्य भारते।
अचलं परमैश्वर्य॑ लभते नात्र संशयः॥ १९॥

भारत वर्ष में उसको कभी अपने बन्धुओं से वियोग का दुःख नहीं होता। वह अविचल एवं महान ऐश्वर्य का भागी होता है, इसमें संशय नहीं है॥ १९॥

सुसंयतोऽतिभक्त्या च मासमेकं श्रृणोति यः।
अभार्यो लभते भार्या सुविनीतां सतीं वराम्॥ २०॥

जो पूर्ण संयम से रहकर अत्यन्त भक्तिभाव से एक मास तक इस स्तोत्र का श्रवण करता है, वह यदि भार्या हीन हो तो अति विनयशील सती साध्वी सुन्दरी भार्या पाता है॥ २०॥

महामूर्खश्च दुर्मेधो मासमेकं श्रृणोति यः।
बुद्धि विद्यां च लभते गुरूपदेशमात्रत:॥ २१॥

जो महान मूर्ख और खोटी बुद्धि का है, ऐसा मनुष्य यदि इस स्तोत्र को एक मास तक सुनता है तो वह गुरु के उपदेश मात्र से बुद्धि और विद्या पाता है॥२१॥

कर्मदुःखी दरिद्रश्च मासं भक्त्या श्रृणोति यः।
ध्रुवं वित्त भवेत् तस्य शङ्करस्य प्रसादत:॥ २२॥

जो प्रारब्ध कर्म से दुःखी और दरिद्र मनुष्य भक्ति भाव से इस स्तोत्र का श्रवण करता है, उसे निश्चय ही भगवान शंकर की कृपा से धन प्राप्त होता है॥ २२॥

इहलोके सुखं भुक्त्वा कृत्वा कीर्तिं सुदुर्लभाम्। 
नानाप्रकारधर्मं च यात्यन्ते शङ्करालयम्॥ २३॥
पार्षदप्रवरो भूत्वा सेवते तत्र शङ्करम्। 
यः श्रृणोति त्रिसंध्यं च नित्यं स्तोत्रमनुत्तमम्॥ २४॥ 

जो प्रतिदिन तीनों संध्याओं के समय इस उत्तम स्तोत्र को सुनता है, वह इस लोक में सुख भोगकर, परम दुर्लभ कीर्ति प्राप्त करके और नाना प्रकार के धर्म का अनुष्ठान करके अन्त में भगवान शंकर के धाम को जाता है, वहाँ श्रेष्ठ पार्षद होकर भगवान शिव की सेवा करता है ॥ २३-२४॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे बाणासुरकृतं शिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

॥ इस प्रकार श्री ब्रह्मवैवर्त महापुराण में बाणासुर कृत शिवस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ॥

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने